"दिल्ली वाले हैं पर दिल तो है ही नहीं" यह डायलॉग साक्षी मर्डर केस में सटीक बैठता है।, यह रही मर्डर से जुडी मार्मिक कहानी

“दिल्ली वाले हैं पर दिल तो है ही नहीं” यह डायलॉग साक्षी मर्डर केस में सटीक बैठता है।, यह रही मर्डर से जुडी मार्मिक कहानी

"दिल्ली वाले हैं पर दिल तो है ही नहीं" यह डायलॉग साक्षी मर्डर केस में सटीक बैठता है।, यह रही मर्डर से जुडी मार्मिक कहानी
"दिल्ली वाले हैं पर दिल तो है ही नहीं" यह डायलॉग साक्षी मर्डर केस में सटीक बैठता है।, यह रही मर्डर से जुडी मार्मिक कहानी

Sakshi Murder Case: “दिल्ली वाले हैं पर दिल तो है ही नहीं” इस तरह के डायलॉग पहले मूवी में काफी चला करते थे परन्तु वर्तमान समय को देख कर ऐसा लगता है की यह बात एकदम सही कही जाती थी क्योंकि रविवार को हुए साक्षी मर्डर केस में यह बात झलकती नजर आ रही थी। रविवार 28 मई 2023 की शाम एक सिरफिरे ने दिल्ली की साक्षी को तब तक चाकू और पत्थर से मारा जब तक उसने डैम नहीं तोड़ दिया। 16 साल की साक्षी के जिस्म पर 40 बार वार किए जाते हैं. एक भारी पत्थर से उसके सीने, चेहरे और सिर को कुचला जाता है। अति तो तब हो गई जब यह सारा तमाशा वहां खड़े लोग और आने-जाने वाले लोग देखते रह गए किसी ने भी उसे रोकने की हिम्मत नहीं करि सिर्फ एक शक्श ने उसे रोकने की कोशिश जरूर करि परन्तु कुछ देर बाद वह भी चले गया। यह हाल भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का है तो आप समझ सकते हैं देश के और राज्य कितने सुरक्षित होंगें। इस तरह की घटना देखकर देश का दिल काँप गया। सवाल यह उठता है की क्या हत्या ही किसी समस्या का समाधान है? क्या हत्या करने से साहिल लो वह मिल गया जो वह चाहता था? जवाब सब जानते हैं नहीं

सवाल यह भी उठता है की क्या वहां खड़े लोगों द्वारा साक्षी को बचाया नहीं जा सकता था? क्या उस सिरफिरे को साक्षी की हत्या करने से रोका नहीं जा सकता था इसका जवाब भी सभी जानते हैं की रोका जा सकता था परन्तु किसी ने भी इसकी जरुरत नहीं समझी क्योकि वह लड़की वहां मौजूद लोगों की बहन नहीं थी उनकी बेटी नहीं थी और जब तक हमारे घर का कोई सदस्य समस्या में न पड़े तब तक हमें किसी की क्या पड़ी है। किसी की जान जाती है तो जाए हमें इससे क्या ? वहां मौजूद किसी ने भी यह नहीं सोचा की वह किसी की भी बहन बेटी हो है तो हमारे देश की ही लड़की और इस नाते से हम उसके परिचित ही हुए। या किसी ने यह नहीं सोचा की वह है तो हमारी तरह इंसान ही हमें उसकी जान बचानी चाहिए। इस घटना से यह बात सच सी साबित होती है की “दिल्ली वाले हैं पर दिल तो है ही नहीं”

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कातिल क़त्ल करके लौट गया, और फिर लौटकर वापस आ गया मारने-

कातिल क़त्ल करके लौट गया लेकिन कुछ सेकंड बाद ही कातिल एक बार फिर लौटता है. तब भी लोग गली में मौजूद थे. अब भी वो लड़की गली के एक कोने में पता नहीं जिंदा या मुर्दा पड़ी हुई थी. खंजर अब भी कातिल के हाथ में था. अब दोबारा वो फिर से जिंदा/मुर्दा लड़की पर खंजर से हमला शुरू कर देता है. इसके बाद जब उसे पक्का यकीन हो जाता है कि अब वो मर चुकी है, तो फिर 8 बजकर 46 मिनट और 56 सेकंड पर वो वहां से निकल जाता है।

इंसान नहीं पत्थर के लोग खड़े थे-

वहां साहिल साक्षी की हत्या कर रहा था और वहां मौजूद लोग आसानी से आना जाना कर रहे थे वीडियो देखने से ऐसा लग रहा है जैसे मानो वहां कोई हत्या हो ही नहीं रही है। कई लोग वहां से गुजरे मगर ऐसे गुजरे जैसे वह रोज मर्डर देखते हों और उनको इसको देखने की आदत पद चुकी हो और उनके लिए यह मामूली सी बात हो। वहां खड़े लोगों में बिलकुल भी डर नहीं दिख रहा है की किसी की हत्या की जा रही है। बस सब अपनेआप को बचाने में लगे हैं।

वाह रे दिल्ली, जैसे तूं निर्जीव है वैसे ही तेरे यहाँ रहने वाले कई लोग निर्जीव हैं।

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